हमारे शरीर के चक्र कौन-कौन से हैं और यह कैसे संतुलित होते हैं?
एक चक्र या एक पहिया हमारे सूक्ष्म शरीर में प्राण (ऊर्जा) का एक बिंदु है, हमारे शरीर के भौतिक समकक्षों जैसे शिराओं, धमनियों और तंत्रिकाओं में स्थित होता है। प्राण या जीवन शक्ति जब भी अवरुद्ध हो जाती है तब उसको मुक्त करने का बेहद फायदेमंद तरीका है योग। योग सड़ी हुई और दुर्गन्धित ऊर्जा को मुक्त करता है और हमारे तंत्र में मुद्राओं और श्वास के माध्यम से ताजा ऊर्जा को आमंत्रण देता है।
सात चक्रों में प्रत्येक चक्र का अपना चेतनत्व है और यह हमारी भावनात्मक तंदुरुस्ती से संबंधित है। मूलाधार या रुट चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित है और यह बुनियादी मानव वृत्ति और अस्तित्व से संबंधित है। स्वाधिष्ठान चक्र, रूट चक्र से ऊपर सैक्रम पर स्थित है और प्रजनन चक्र के सदृश्य है। इसके ऊपर मणिपुर चक्र, उदर क्षेत्र में स्थित है और आत्मसम्मान, शक्ति, भय आदि से संबंधित है और शारीरिक रूप से यह पाचन से संबंधित है। इसके ऊपर अनाहत चक्र, हृदय से थोड़ा ऊपर छाती में स्थित है और प्यार, आंतरिक शांति और भक्ति से सम्बद्ध है। इसके बाद विशुद्धी चक्र, गले में स्थित है और संचार, आत्म-अभिव्यक्ति आदि से सम्बद्ध है। इसके ऊपर आज्ञा चक्र, जो दोनों भौंहों के बीच स्थित है और अंतर्ज्ञान, कल्पना और स्थितियों से निपटने की क्षमता का प्रत्युतर देता है। अंत में, सहस्रार है, जो सिर के शीर्ष पर है और आंतरिक और बाहरी सौंदर्य, आध्यात्मिकता के साथ संबंध से जुड़ा है।
जब योग और मुद्रा का अभ्यास किया जाता है, तो चक्र संतुलित हो जाते हैं और हमारी प्रणाली को शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एक स्थिर, संतुलित तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
हमारे सात चक्र इस प्रकार हैं:
मूलाधार | Muladhara
स्वाधिष्ठान | Swadishthana
मणिपुर | Manipura
अनाहत | Anahata
विशुद्धि | Vishuddhi
आज्ञा | Ajna
सहस्रार | Sahasrara
मूलाधार चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपने पेरिनियम (गुदा और जननेन्द्रियों के बीच के स्थान) पर केंद्रित करें।
अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएं। हथेलियों को अपने घुटनों पर आकाश की ओर देखते हुए रखते हुए हाथों को विश्राम कराएं।
गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
इसका बीज मंत्र लं है।
स्वादिष्ठान चक्र:
अपनी गोद में अपने दाहिने हाथ को बायें हाथ पर रख कर विश्राम कराएं, हथेलियाँ आकाश की ओर रहें, दोनों आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपनी नाभि के नीचे एक इंच के क्षेत्र में से लेकर पहली लुम्बर वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
- अंगूठे हल्के से एक दूसरे से स्पर्श करें।
- गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
- 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएं।
- इसका बीज मंत्र वं है
मणिपुर चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपनी नाभी से लेकर सोलर प्लेक्सस और आठवीं थोरेसिक वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
अपनी ऊँगलियों को सीधा रखें,सामने की ओर देखतीं हुईं एक दूसरे को शीर्ष पर छूती हुई हों। अपने अंगूठों के साथ ‘वी’ की आकृति बनाएँ। दाहिना अँगूठा बायें अँगूठे को क्राँस करते हुए रहे।
गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
इसका बीज मंत्र रं है।
अनाहत चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपने हृदय क्षेत्र से लेकर पहली थोरेसिक वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएं। अपने बाएं हाथ की हथेली को अपने बाएं घुटने पर विश्राम कराएं अपने दाहिने हाथ को अपने स्तनों के बीच तक उठाएं, हथेली हल्की सी आपके हृदय की तरफ झुकी रहे।
गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
इसका बीज मंत्र यं है।
विशुद्धि चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने
आज्ञा चक्रध्यान को गले के आधार क्षेत्र पर से लेकर तीसरी सरवाइकल वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
अपने दोनों अंगूठों को छूते हुए एक वृत बनाएं और अपनी ऊंगलियों को आपस में क्राँस करें और ढीले कप की आकृति लिये हुए हो। अपने हाथों को अपने गले, सोलर प्लेक्सस, के सामने तक उठाएं, या अपनी गोद में आराम करने दें।
गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
इसका बीज मंत्र हं है।
आज्ञा चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपनी तीसरी आंख के क्षेत्र पर केंद्रित करें, भौहों के बीच के बिंदु से थोड़ा ऊपर से शुरु होकर पहली सरवाइकल कशेरुका तक, खोपड़ी के आंतरिक भाग को शामिल करते हुए।
अपने दोनों अंगूठों तथा दोनों तर्जनि ऊँगलियों के सिरों को आपस में स्पर्श कराते हुए हृदय का आकार बनायें, अनामिका व कनिष्ठा आपस में ऊँगलियों के दूसरे पोरों पर स्पर्श करें। मध्यमा ऊँगलियों से ताज बनायें। अपने हाथों को उठाऐं तीसरे नेत्र, सोलर प्लेक्सस के सामने रखें, या अपनी गोद में विश्राम करने दें।
इसका बीज मंत्र ओम् है
सहस्त्रार चक्र:
आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने सिर के शीर्ष पर स्थित अपने मुकुट के क्षेत्र पर और अपनी खोपड़ी से ऊपर तीन इंच तक अपना ध्यान केंद्रित करें।
ऊँगलियों को आपस में अंदर की ओर क्रॉस करते हुए और बायें अंगूठे को दायें के नीचे रखें, इस तरह से हाथों को जकड़ लें। दोनों अनामिका ऊँगलियों को उठाएं और मुकुट बनाएं। अपने सिर के ऊपर से दोनों हाथों को उठाए, सोलर प्लेक्सस के सामने, या अपनी गोद में विश्राम कराएं।
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